अखिर कहाँ गये वो प्रकृति के सफाईकर्मि गिद्द
दोस्तो आज की पोस्ट प्रकृति के सफाईकर्मी गिद्दो के नाम प्रकृति के सभी जीव-जन्तु अपना-अपना कृतव्य निभाते है तथा एक दुसरे पर निर्भर रहकर प्रकृति का संतुलन बनाये रखते हैं, यदि एक भी जीव अपना कृतव्य भूल जाये तो प्रकृति का संतुलन बिगङ जाता हैं।
फोटो स्रोत- गूगल
कुछ ऐसा ही गिद्दो के विलुप्त होने से हूँआ हैं। वो पल याद करके बहुत दुःख होता हैं कि जहाँ आज से 10-12 साल पहले पेङो पर गिद्दो की आवज गुँजा करती थी वह पेङ आज खाली नजर आते हैं।
मुझे आज भी वो पल याद हैं जब भी कोई पशु मरता था कि कुछ ही पलो में उसका सफाया कर दिया जाता था लेकिन आज एक पशु भी दस बीस दिन तक पङा-पङा प्रकृति को दुषित करते हैँ, उस समय चाह दस पशु भी मर जाये एक दिन में सफा हो जाता था। लेकिन यह सोचकर बहुत अफसोस होता है कि अखिर कहाँ गये वो प्रकृति के सफाईकर्मि आज उनके बिना हमारी प्रकृति प्रदुषित हो रही हैं, मैं बार बार यह सोचता हूँ लेकिन आज तक पता नहीं चला कि एक साल में ही सारे गिद्द कहाँ गायब हो गये । खैर कोई बात नहीँ लेकिन आपने तो देखा होगा परन्तु आने वाली पीढी केवल नाम ही सुनेगी या फिर चिङियाघर में ही देखगें।
इस लिए आप से अनुरोध है कि एक परजाति लुप्त हो गयी जो गयी लेकिन कोई दुसरी परजाति लुप्त न हो पाये ।
मांसाहारी जीव (स्तनधारी) इसके केवल 36 प्रतिशत हिस्से को खा सकते हैं और बाकी गिद्धों के हिस्से में आता है. इस संसाधन के लिए जीवाणु और कीड़े गिद्धों से मुक़ाबला करते हैं, लेकिन इसके बावजूद गिद्ध ही सबसे बड़े उपभोक्ता हैं."
गिद्ध बीमारियों को फैलने से रोकने के साथ ही जंगली कुत्तों जैसे अन्य मुर्दाख़ोरों की संख्या को सीमित रखने में भी मददगार साबित होते हैं
कोई सरहद न इन्हें रोके
गिद्ध अपने भोजन के लिए काफ़ी अधिक दूरी तय कर सकते हैं.
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