धनतेरस क्योँ मनाई जाती हैँ?
धनतेरस क्यो मनाई जाती है । लोक परम्परा के अनुसार इस दिन बर्तन खरीदते हैँ। लेकिन सत्य कुछ अलग ही जानेँ ।
क्योकि बर्तन आदि खरिदने का कोई औचित्य नहीँ ।
पुराणो के अनुसार इस दिन देवताओ के वैद्य धन्वन्तरी का जन्म हुआ अथार्थ समुन्द्र मंथन से इस दिन 14 रत्नो के साथ धन्वन्तरी भी उत्पन हुऐँ।<-!-more-->
पुराणो के अनुसार धन्वन्तर आयुर्वैद के साथ ज्यौतिष के भी ज्ञाता थेँ। उनको पता था कि उनकी मृत्यु सर्प डंसने होगी । तब धन्वन्तरी को सर्प से बचाने के लिए सारी सुरक्षा प्रबंध कर दिया । लेकिन उन्होने अपनी गठरी को टांगने के लिए मार्ग चलते एक लकङी उठाकर कंधे पर रखकर चल पङेँ और कहते हैँ कि उसी छङी ने सर्प का रूप करके उन्हे डंस लिया क्योकि उनकी आँखो मेँ अमृत रहता था लेकिन घाव पीट पर होने कारण वह उसे देख नहीँ पाये और उनकी मृत्यु होगी । क्योकि अश्वयभवी हैँ। मृत्यु सत्य है उसे कोई नहीँ भाग सकता क्योँकि देवता के वैद्य जिनकी आँखो मेँ अमृत का वास वह भी अपने आप को नहीँ बचा सके तो हमारा क्या हैँ।
धनतेरस के दिन कुछ ही ज्योतिष और वैद्यो को छोङकर सम्पूर्ण भारत मेँ कही भी धन्वन्तरी की पूजा नहीँ होती हैँ।
क्योकि बर्तन आदि खरिदने का कोई औचित्य नहीँ ।
पुराणो के अनुसार इस दिन देवताओ के वैद्य धन्वन्तरी का जन्म हुआ अथार्थ समुन्द्र मंथन से इस दिन 14 रत्नो के साथ धन्वन्तरी भी उत्पन हुऐँ।<-!-more-->
पुराणो के अनुसार धन्वन्तर आयुर्वैद के साथ ज्यौतिष के भी ज्ञाता थेँ। उनको पता था कि उनकी मृत्यु सर्प डंसने होगी । तब धन्वन्तरी को सर्प से बचाने के लिए सारी सुरक्षा प्रबंध कर दिया । लेकिन उन्होने अपनी गठरी को टांगने के लिए मार्ग चलते एक लकङी उठाकर कंधे पर रखकर चल पङेँ और कहते हैँ कि उसी छङी ने सर्प का रूप करके उन्हे डंस लिया क्योकि उनकी आँखो मेँ अमृत रहता था लेकिन घाव पीट पर होने कारण वह उसे देख नहीँ पाये और उनकी मृत्यु होगी । क्योकि अश्वयभवी हैँ। मृत्यु सत्य है उसे कोई नहीँ भाग सकता क्योँकि देवता के वैद्य जिनकी आँखो मेँ अमृत का वास वह भी अपने आप को नहीँ बचा सके तो हमारा क्या हैँ।
धनतेरस के दिन कुछ ही ज्योतिष और वैद्यो को छोङकर सम्पूर्ण भारत मेँ कही भी धन्वन्तरी की पूजा नहीँ होती हैँ।
बहुत सुन्दर आलेख
ReplyDeleteस्वयं शून्य
आभार आप जो पधारै
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