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Rochk jankari:- मगरमच्छ रोता है


मगरमच्छ के आंसूं वाला मुहावरा तो सभी ने सुना होगा जिसका अर्थ होता है च्दिखावे के लिए रोना या दुऱ्खी होना। इसके पीछे कारण यह है कि हैं। जब मगरमच्छ अथवा घड़ियाल किसी जीव-जन्तु को अपना भोजन बनाता है, तो कुछ ही देर बाद उसकी आंखों से आंसूं बहने लगते है। इस अवस्था में उसे देखकर ऐसा लगता है कि जैसे उसे अपने द्वारा मारे गए जीव-जन्तु की मृत्यु पर गहरा शोक हो रहा हो, परन्तु ऐसा कुछ भी नही है। सच तो यह है कि भोजन के बाद इस प्रकार से आंसू बहाना उसकी नैतिकता नहीं, बल्कि उसकी जैविक विवशता होती है।
वैज्ञानिक अध्ययनों से ज्ञात हुआ है कि जब मगरमच्छ अपने शिकार को निगलते हैं, तो उसके पेट में जाने के बाद से ही मगरमच्छों के आमाशय से पाचक द्रव्यों का स्त्राव शुरू होकर भोजन के साथ रासायनिक यिाएं करने लगता है। इस प्रयिा के दौरान भोजन के पाचन के साथ-साथ मगरमच्छों के शरीर में लवणों के स्तर में भी वृध्दि होने लगती है तथा इन अतिरिक्त लवणों का उनके शरीर से निकलना आवश्यक होता है क्योंकि यदि ये लवण शीघ्र ही उत्सजित न हो पाएं, तो इनका उनके शरीर पर दुष्प्रभाव पड़ता है। अत: प्रकृति ने मगरमच्छों के शरीर से ऐसे हानिकारक लवणों की निकासी के लिए विशेष प्रकार की ग्रन्थियों की व्यवस्था की हुई है जोकि अन्य प्राणियों के उत्सर्ज़न से भिन्न होती है। मगरमच्छों के शरीर में उत्पन्न होने वाले ऐसे अतिरिक्त लवणों को पहले तो इन ग्रन्थियों के द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है। फिर इन्हें शरीर से बाहर उत्सजित किया जाता है। किन्तु ये ग्रन्थियां मूत्राशय में नहीं, अपितु आंखों के कोनों में खुलती हैं। जिस समय मगरमच्छों के शरीर में अतिरिक्त लवणों का स्तर बढ़ जाता है, तो लवण नलिकाओं की मदद से उसका निष्कासन या रिसाव उनकी आंखों से होने लगता है। जिसे देखकर लगता है कि ये मगरमच्छ आंसू बहाते हुए रो रहे हैं।
इस बारे में वैज्ञानिकों का मानना है कि मगरमच्छ जैसे कृत्रिम आंसुओं का बहाव या लवणों का रिसाव केवल उन्हीं के शरीर में नहीं होता, बल्कि कई दूसरे प्राणियों के शरीर में भी अतिरिक्त लवणों के निष्कासन के लिए ऐसी अथवा इससे कुछ अलग प्रकार की विशेष ग्रन्थियां होती हैं। इनमें कुछ सांप और छिपकलियों जैसे रेंगने वाले सरीसृप भी शामिल हैं। हरे रंग वाली मादा कछुआ भी अण्डे देने के उपरान्त ऐसे ही कृत्रिम आंसू बहाती है, जबकि कुछ जीव-जन्तुओं के शरीर की लवण नलिकाएं मगरमच्छों की तरह उनकी आंखों में न खुलकर उनके नथुनों में खुलती हैं।

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